अश्वगंधा की उन्नत खेती
भारत में अश्वगंधा की खेती
भारत में
अश्वगंधा अथवा असगंध जिसका वनस्पतिक नाम वीथानीयां सोमनीफेरा है, यह एक महत्वपूर्ण औषधीय फसल के
साथ-साथ नकदी फसल भी है। यह पौधा ठंडे प्रदेशों को छोड़कर अन्य सभी भागों में पाया
जाता है। मुख्य रूप से इसकी खेती मध्यप्रदेश के पश्चिमी भाग में मंदसौर, नीमच, मनासा, जावद, भानपुरा तहसील में व निकटवर्ती राज्य
राजस्थान के नांगौर जिले में होती है। नागौरी अश्वगंधा की बाजार में एक अलग पहचान
है। इस समय देश में अश्वगंधा की खेती लगभग 5000 हेक्टेयर में की जाती है जिसमें कुल 1600 टन प्रति वर्ष उत्पादन होता है जबकि
इसकी मांग 7000 टन प्रति
वर्ष है।
पादप विवरण
अश्वगंधा
एक मध्यम लम्बाई (40 से. मी.
से 150
से. मी.) वाला एक बहुवर्षीय
पौधा है। इसका तना शाखाओं युक्त, सीधा, धूसर या श्वेत रोमिल होता है। इसकी जड़
लम्बी व अण्डाकार होती है। पुष्प छोटे हरे या पीले रंग के होते है। फल 6 मि. मी चौड़े, गोलाकार, चिकने व लाल रंग के होते हैं। फलों के
अन्दर काफी संख्या में बीज होते हैं।
अश्वगंधा
खरीफ (गर्मी) के मौसम में वर्षा शुरू होने के समय लगाया जाता है। अच्छी फसल के लिए
जमीन में अच्छी नमी व मौसम शुष्क होना चाहिए। फसल सिंचित व असिंचित दोनों दशाओं
में की जा सकती है। रबी के मौसम में यदि वर्षा हो जाए तो फसल में गुणात्मक सुधार
हो जाता है। इसकी खेती सभी प्रकार की जमीन में की जा सकती है। केन्द्रीय मृदा
लवणता अनुसंधान संस्थान, करनाल
में किए गए परीक्षणों से पता चला है कि इसकी खेती लवणीय पानी से भी की जा सकती है।
लवणीय
पानी की सिंचाई से इसमें एल्केलोइड्स की मात्रा दो से ढाई गुणा बढ़ जाती है। इसकी
खेती अपेक्षाकृत कम उपजाऊ व असिंचित भूमियों में करनी चाहिए। विशेष रूप से जहां पर
अन्य लाभदायक फसलें लेना सम्भव न हो या कठिन हो। भूमि में जल निकास की अच्छी
व्यवस्था होनी चाहिए। फसल की अच्छी बढ़वार के लिए शुष्क मौसम व तापमान 350 ब से अधिक नहीं होना चाहिए। इस फसल
के लिए 500 से 700 मि.मी वर्षा वाले शुष्क व अर्धशुष्क
क्षेत्र उपयुक्त हैं।
अनुपजाऊ
एवं सूखे क्षेत्रों के लिए केन्द्रीय औषधीय एवं सुगंध अनुसंधान संस्थान, लखनऊ की पोशीता एवं रहितता नामक
प्रजातियां उपयुक्त पायी गई हैं।
भूमि की तैयारी व बुआई
वर्षा
होने से पहले खेत की 2-3 बार
जुताई कर लें। बुआई के समय मिट्टी को भुरभुरी बना दें। बुआई के समय वर्षा न हो
रही हो तथा बीजों में अकुंरण के लिए पर्याप्त नमी हो। वर्षा पर आधारित फसल को
छिटकवां विधि से भी बोया जा सकता है। अगर सिचिंत फसल ली जाए तो बीज पंक्ति से
पंक्ति 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 5-10 से. मी. रखने पर अच्छी उपज मिलती है
तथा उसकी निराई-गुडाई भी आसानी से की जा सकती है। बुआई के बाद बीज को मिट्टी से
ढक देना चाहिए। अश्वगंधा की फसल को सीधे खेत में बीज द्वारा अथवा नर्सरी द्वारा
रोपण करके उगाया जा सकता है। नर्सरी तैयार करने के लिए जून-जुलाई में बिजाई करनी
चाहिए। वर्षा से पहले खेत को 2-3 बार
जुताई करके मिट्टी को अच्छी तरह भुरभुरी बना देना चाहिए। बुआई के तुरन्त बाद
फुआरे से हल्का पानी लगा दें। एक हेक्टेयर के लिए 5 किलो बीज की नर्सरी उपयुक्त होगी।
बोने से पहले बीजों को थीरम या डाइथेन एम-45 से 3 ग्राम
प्रति किलो बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए। ऐसा करने से अकुंर बीज जनित रोगों
से सुरक्षित रहते है। बीज 8-10 दिन में
अंकुरित हो जाते है। अकुंरण के बाद उनकी छटाई कर लें। पौधों की ऊंचाई 4 से 6 सें. मी. होने पर पंक्ति से पंक्ति
की दूरी 30 से. मी. व पौधे से पौधे की दूरी 5-10 सें. मी. की कर देनी चाहिए।
अश्वगंधा
की फसल में किसी प्रकार की रासायनिक खाद नही डालनी चाहिए क्योंकि इसका प्रयोग औषधि
निर्माण में किया जाता है लेकिन बुआई से पहले 15 किलो नाईट्रोजन प्रति हैक्टर डालने
से अधिक ऊपज मिलती है। बुआई के 20-25 दिन
पश्चात् पौधों की दूरी ठीक कर देनी चाहिए। खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालते
रहना चाहिए। अश्वगंधा जड़ वाली फसल है इसलिए समय-समय पर निराई-गुडाई करते रहने से
जड़ को हवा मिलती रहती है जिसका उपज पर अच्छा प्रभाव पड़ता है।
सिंचित
अवस्था में खेती करने पर पहली सिंचाई करने के 15-20 दिन बाद दूसरी सिंचाई करनी चाहिए।
उसके बाद अगर नियमित वर्षा होती रहे तो पानी देने की आवश्यकता नही रहती। बाद में
महीने में एक बार सिंचाई करते रहना चाहिए। अगर बीच में वर्षा हो जाए तो सिंचाई की
आवश्यकता नही पड़ती। वर्षा न होने पर जीवन रक्षक सिंचाई करनी चाहिए। अधिक वर्षा या
सिंचाई से फसल को हानि हो सकती है। 4 ई.सी. से
12 ई.सी. तक वाले खारे पानी से सिंचाई
करने से इसकी पैदावार पर कोई असर नही पड़ता परन्तु गुणवत्ता 2 से 2.5 गुणा बढ़ जाती है।
जड़ों को
निमेटोड के प्रकोप से बचाने के लिए 5-6 कि.ग्रा
ग्राम फ्यूराडान प्रति हैक्टर की दर से बुआई के समय खेत में मिला देना चाहिए।
पत्ती की सड़न (सीडलीग ब्लास्ट) व लीफ स्पाट सामान्य बीमारियां हैं। जो खेत में
पौधों की संखया कम कर देती हैं। अतः बीज को डायथीन एम-45 से उपचारित करके बोना चाहिए। एक माह
पुरानी फसल को 3 ग्राम
प्रति लीटर पानी में डायथीन एम-45 मिलाकर 7-10 दिन के अंतर पर छिड़काव करते रहना
चाहिए जब तक बीमारी नियंत्रित न हो जाए। पत्ती भक्षक कीटों से फसल को सुरक्षित
रखने के लिए रोगर या नुआन 0.6 प्रतिशत
का छिड़काव 2-3 बार करना
चाहिए।
अश्वगंधा
की फसल 135
से 150 दिन के मध्य खुदाई के लिए तैयार हो
जाती है। पौधे की पत्तियां व फल जब पीले हो जाए तो फसल खुदाई के लिए तैयार होती
है। पूरे पौधे को जड़ समेत उखाड़ लेना चाहिए। जड़ें कटने न पाए इसलिए पौधों को उचित
गहराई तक खोद लेना चाहिए। बाद में जड़ों को पौधो से काट कर पानी से धो लेना चाहिए व
धूप में सूखने दें। जड़ों की छंटाई उनकी आकृति के अनुसार निम्न प्रकार से करनी
चाहिए।
सर्वोतम या ए श्रेणी
जड़ें 7 सें. मी. लम्बी व तथा 1-1.5 सें. मी. व्यास वाली भरी हुई चमकदार
और पूरी तरह से सफेद ए श्रेणी मानी जाती हैं।
उतम या बी श्रेणी
5 सें. मी.
लम्बी व 1
सें. मी. व्यास वाली ठोस चमकदार
व सफेद जड़ उत्तम श्रेणी की मानी जाती है।
मध्यम या सी श्रेणी
3-4 सें. मी.
लम्बी,
व्यास 1 सें. मी. वाली तथा ठोस संरचना वाली
जड़ें मध्यम श्रेणी में आती हैं।
निम्न या डी श्रेणी
उपरोक्त
के अतिरिक्त बची हुई कटी-फटी, पतली, छोटी व पीले रंग की जड़ें निम्न अथवा
डी श्रेणी में रखी जाती हैं।
जड़ो को
जूट के बोरों में भरकर हवादार जगह पर भडांरण करें। भडांरण की जगह दीमक रहित होनी
चाहिए। इन्हें एक वर्ष तक गुणवत्ता सहित रुप में रखा जा सकता है।
आमतौर पर
एक हैक्टर से 6.5-8.0 कुंतल
ताजा जड़ें प्राप्त होती हैं जो सूखने पर 3-5 क्विंटल रह जाती है। इससे 50-60 किलो बीज प्राप्त होता है।
नीमच
मण्डी (मघ्य प्रदेश), अमृतसर
(पंजाब),
खारी बावली (दिल्ली), पंचकूला (हरियाणा), सीतामढ़ी (बिहार)
अश्वगंधा
खरीफ फसल के रूप मे लगाई जा सकती है तथा फसल चक्र में गेहूं की फसल ली जा सकती है।
अश्वगंधा
की जड़ों में 13 एल्कलायड
पाये जाते है जिनकी मात्रा 0.13 से 0.51 प्रतिशत होती है। जड़ों में प्रमुख
अल्कलायड निकोटीन, सोम्नीफेरीन, विथेनीन, बिथेनेनीन, सोमिनीन, कोलीन, विथेफेरिन है। पत्तियों में विथेनीन, विथेफेरिन-ए अल्कलायड पाये जाते हैं
इनके अतिरिक्त इनमे ग्लाइकोसाइड, विटानिआल, स्टार्च, शर्करा व अमीनो अम्ल भी पाये जाते है।
खारे
पानी से भी इस फसल को उगाया जा सकता है। इसकी लवण सहनशीलता 16 ई. सी. तक होती है। खारे पानी के
उपयोग से इसकी गुणवता में 2 से 2) गुणा वृद्धि होती है। अल्कलायड की
मात्रा 0.5
से बढ़कर 1.2 प्रतिशत हो जाती हैं।
अश्वगंधा
की जड़ें व पत्तियां औषधि के रूप में काम में लाई जाती हैं जो कि निम्नलिखित
बीमारियों में उपयोगी है।
विथेफेरिन
: टयूमर प्रतिरोधी है।
विथेफेरिन-ए
: जीवाणु प्रतिरोधक है।
विथेनीन
: उपशामक व निद्रादायक होती है।
जड़ों का उपयोग
सूखी जड़ों से आयुर्वेदिक व यूनानी दवाइयां बनाई जाती हैं।
इसकी जड़ों से गठिया रोग, त्वचा की बीमारियां, फेफड़े में सूजन, पेट के फोड़ों
तथा मंदाग्निका उपचार किया जाता है। पंजाब में इसकी जड़ों का उपयोग कमर व कूल्हों
के दर्द निवारण हेतु किया जाता है।
पत्तियों का उपयोग
पत्तियों
से पेट के कीड़े मारने तथा गर्म पत्तियों से दुखती आँखों का इलाज किया जाता है। हरी
पत्तियों का लेप घुटनों की सूजन तथा क्षय (टी.बी.) रोग के इलाज के लिए किया जाता
है। इसके प्रयोग से रुके हुए पेशाब के मरीज को आराम मिलता है। इसे भारतीय
जिनसेंग की
संज्ञा दी गई है जिसका उपयोग शक्तिवर्धक के रूप में किया जा रहा है। इसके नियमित
सेवन से मानव में रोगों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। इसकी निरन्तर बढ़ती मांग को
देखते हुए इसके उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं।
अश्वगंधा की खेती के लिए आय-व्यय का ब्यौरा
एक
हेक्टेयर में अश्वगंधा पर अनुमानित व्यय रु. 10000/- आता है जबकि लगभग 5 क्विंटल जड़ों तथा बीज का वर्तमान
विक्रय मूल्य लगभग 78,750 रुपये
होता है। इसलिए शुद्ध-लाभ 68,750 रुपये
प्रति हेक्टेयर प्राप्त होता है। उन्नत प्रजातियों में यह लाभ और अधिक हो सकता है।
सारणी-1. अश्वगंधा की खेती का प्रति हेक्टेयर
आय-व्यय का विवरण
|
व्यय
|
रु.*
|
1.
|
खेत की
तैयारी
|
2000.00
|
2.
|
बीज की
कीमत
|
1000.00
|
3.
|
नर्सरी
तैयार करना
|
500.00
|
4.
|
पौध
रोपण
|
2000.00
|
5.
|
निराई, गुडाई
|
1000.00
|
6.
|
सिंचाई
|
500.00
|
7.
|
खाद, उर्वरक और उनका प्रयोग
|
1000.00
|
8.
|
जड़ की
खुदाई और उनकी सफाई
|
2000.00
|
|
योग
|
10000.00*
|
* दिये गये
कुल योग में स्थान अनुसार और वर्तमान मुद्रास्फीति की दर के अनुसार परिवर्तन हो
सकता है। अत: दिया गया आय-व्यय का विवरण रुपये मूल्यों में परिवर्तनीय है। यह केवल
अनुमान पर आधारित है।
|
आय**
|
|
उपज
|
मूल्य
प्रति किलो ग्राम
|
कुल आय
|
जड़ें 5 क्विंटल
|
145/-
|
72,500.00
|
बीज 50 किलोग्राम
|
125/-
|
6,250.00
|
|
योग
|
78,750.00**
|
शुद्ध-लाभ
प्रति हेक्टेयर : 78,750-10,000 = 68,750 रुपये**
** दी गई
कुल आय में स्थान अनुसार खर्च और वर्तमान मुद्रास्फीति की दर के अनुसार परिवर्तन
हो सकता है। अत: दिया गया आय (लाभ) का विवरण रुपये मूल्यों में परिवर्तनीय।यह केवल
अनुमान पर आधारित है।
अश्वगंधा की खेती ( Ashwagandha
Farming) से सम्बंधित जानकारी
अश्वगंधा की खेती औषधीय फसल के रूप में की जाती
है | इसका
पौधा झाड़ीनुमा और बहुवर्षीय होता है | जिसमे निकलने वाली
छाल, बीज
और फल को अनेक प्रकार की दवाइयो को बनाने के लिए इस्तेमाल में लाते है | अश्वगंधा की जड़ो से
अश्व (घोड़ा) की तरह ही गंध आती है, जिस वजह से इसे
अश्वगंधा कहते है | अश्वगंधा
के पौधों को सभी जड़ी-बूटियों में सबसे अधिक महारत हासिल है | चिंता और तनाव की
समस्याओं से छुटकारा पाने के लिए अश्वगंधा अधिक लाभकारी है | यह शरीर की ताकत को
भी बढ़ाता है | महिलाओ
के लिए यह बहुत ही लाभकारी औषधि है, जिस वजह से बाज़ारो
में इसकी मांग अधिक मात्रा में बनी रहती है |
भारत में अश्वगंधा की खेती हरियाणा, आंध्रप्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, गुजरात, पंजाब, केरल और जम्मू कश्मीर में की जा रही है | अश्वगंधा का सम्पूर्ण पौधा इस्तेमाल में लाया जाता है, जिस वजह से किसान भाई इसकी खेती कर अधिक मात्रा में लाभ कमाते है | यदि आप भी अश्वगंधा की खेती कर अधिक मुनाफा कमाना चाहते है, तो इस लेख में आपको अश्वगंधा की खेती कैसे करे (Ashwagandha Farming In Hindi) तथा अश्वगंधा की खेती से कमाई के बारे में भी जानकारी से अवगत करा रहे है |
अश्वगंधा की खेती
कैसे करे (Ashwagandha
Farming In Hindi)
यहाँ अश्वगंधा की खेती के लिए आवश्यक मिट्टी, जलवायु एवं तापमान (Ashwagandha Cultivation Soil,
Climate and Temperature) कितना आवश्यक इस विषय में जानकारी कुछ इस तरह से है:-
अश्वगंधा की खेती के लिए उचित जल निकासी वाली भूमि की
आवश्यकता होती है | इसकी
खेती में लाल मिट्टी और बलुई दोमट मिट्टी की जरूरत होती है | अश्वगंधा की खेती के
लिए 7.5 से 8 P.H. मान वाली भूमि की आवश्यकता होती है |इसकी खेती के लिए
शीतोष्ण जलवायु की आवश्यकता होती है | बारिश के मौसम में
इसके पौधों को 500-750 मिली मीटर वर्षा की आवश्यकता होती है, क्योकि पौध विकास के
लिए नम भूमि की आवश्यकता होती है | इसके पौधों को विकास
करने के लिए 25 से 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है |
अश्वगंधा की तासीर (Ashwagandha
Effect)
अश्वगंधा की तासीर अधिक गर्म होती है | इसलिए इसका सेवन करते
समय बहुत ही कम मात्रा का उपयोग करे | इसके अलावा अश्वगंधा
को अन्य जड़ी बूटियों के साथ इस्तेमाल करे, ताकि शरीर में अधिक
गर्मी उत्पन्न न हो | जाड़ों
के मौसम में इसका सेवन करना अच्छा माना जाता है |
अश्वगंधा के फायदे (Ashwagandha
Benefits)
रोग प्रतिरोधक
क्षमता
यह शरीर की रोग
प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाता है | कोरोना काल में डाक्टरों द्वारा
शरीर की इम्युनिटी को बढ़ाने के लिए भी इसका सेवन करने के लिया कहा गया है | इसमें एंटी ऑक्सीडेंट
गुणों की भरपूर मात्रा पायी जाती है, जो रोग प्रतिरोधक
शक्ति को मजबूत करती है, जिससे
आप कई प्रकार की बीमारियों से बच सकते है |
तनाव एवं डिप्रेशन
में लाभकारी
यह मानसिक तनाव और डिप्रेश की समस्याओ को अधिक तेजी से
दूर करता है | शरीर
में होने वाले तनाव के चलते ब्लड का शुगर लेवल कम हो जाने के चलते आप टाइप 1 शुगर के शिकार हो
सकते है, और
आपका वजन भी तेजी से बढ़ सकता है | अश्वगंधा का नियमित
रूप से सेवन कर आप कोर्टिसोल हार्मोन को नियंत्रित कर सकते है, जिससे आपको तनाव जैसी
समस्या में 60 फीसदी तक लाभ प्राप्त होगा |
कैंसर में लाभकारी
अश्वगंधा में कैंसर
रोधी गुणों की भरपूर मात्रा पायी जाती है | यह गुण शरीर में
कैंसर सेल्स को बढ़ने से
रोकता है, और
इस भयावह बीमारी के संक्रमण को दूर रखने में सहायता करता है | कैंसर रोगी
व्यक्तियों के शरीर में यह रिएक्टिव ऑक्सीजन स्पीशीज गुणों का निर्माण करता है, जिससे कैंसर में होने
वाले कीमियोथेरेपी के साइड इफेक्ट का खतरा कम हो जाता है |
पुरुष के लिए अधिक
लाभकारी
अश्वगंधा का सेवन
पुरुषो की शारीरिक समस्याओं के लिए अधिक लाभकारी माना जाता है | यह पुरुषो में
पुरुषतत्व का अधिक मात्रा में निर्माण कर बाँझपन की समस्या को दूर करता है | यह सीमेन को अधिक
गाढ़ा करता है, जो
बाँझपन की समस्या को ख़त्म करता है | इसके लिए पुरुषो को
नियमित तौर पर एक चुटकी अश्वगंधा का सेवन दूध के साथ करना चाहिए |
कोलस्ट्रोल को कम
करने में सहायक
अश्वगंधा में एंटी इंफ्लेमेंट्री औऱ एंटी ऑक्सीडेंट के
भरपूर गुण पाए जाते है, जो
कोलेस्ट्रॉल के स्तर को कम करता है | जिससे दिल संबंधित
होने वाली बीमारियों से खतरा कम हो जाता है | इसका नियमित रूप से
सेवन करने पर दिल की मांसपेशियां मजबूत बनती है, औऱ हार्टअटैक के साथ
ही दिल की अन्य बीमारियों के होने का खतरा भी कम हो जाता है |
अश्वगंधा की उन्नत
किस्में (Ashwagandha
Improved Varieties)
जवाहर अश्वगंधा 20
अश्वगंधा की यह एक
उन्नत क़िस्म है, जिसे
तैयार होने में 150 से 160 दिन का समय लग जाता है | जो प्रति हेक्टेयर के
हिसाब से 6 से
8 क्विंटल
सूखी जड़ो का उत्पादन दे देती है |
डब्लू.स. 10, 134
इस क़िस्म को मंदसौर अनुसंधान केन्द्र के माध्यम से
तैयार किया गया है | यह
क़िस्म 155 से 165 दिन बाद पैदावार देना आरम्भ कर देती है, जिसका प्रति हेक्टेयर
उत्पादन 8 क्विंटल
के आसपास होता है |
पौशिता किस्म
अश्वगंधा की इस क़िस्म को सीमेप लखनऊ के माध्यम से
तैयार किया गया है | जिन्हे
तैयार होने में 160 से 170 दिन का समय लग जाता है | यह क़िस्म प्रति
हेक्टेयर के हिसाब से 7 से
8 क्विंटल
सूखी जड़ो का उत्पादन दे देती है |
अश्वगंधा के खेत की
तैयारी (Ashwagandha
Field Preparation)
अश्वगंधा की खेती करने से पहले उसके खेत को अच्छी तरह
से तैयार कर लेना चाहिए | इसके
लिए सबसे पहले खेत की गहरी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत में मौजूद
पुरानी फसल के अवशेष पूरी तरह से नष्ट हो जाते है| खेत की पहली जुताई के
पश्चात् उसमे 15 से 18 गाड़ी पुरानी गोबर की खाद को प्रति हेक्टेयर के हिसाब से देना होता
है | इसके
बाद खेत की दो से तीन तिरछी जुताई कर दी जाती है, इससे खेत की मिट्टी
में गोबर की खाद ठीक तरह से मिल जाती
है |
मिट्टी में खाद को मिलाने के पश्चात खेत में पानी लगा
दिया जाता है | इसके
बाद जब खेत की मिट्टी सूख जाती है, तो उसकी रोटावेटर
लगाकर अच्छे से जुताई कर मिट्टी में मौजूद मिट्टी के ढेलो को तोड़ कर उसे भुरभुरा
कर दिया जाता है | भुरभुरी
मिट्टी में पाटा लगाकर खेत को समतल कर देते है | इसके बाद बीज रोपाई
के लिए खेत में 20 CM की दूरी रखते हुए कतारों को तैयार कर लिया जाता है |
अश्वगंधा के बीज
रोपाई का समय और तरीका (Ashwagandha Seed Planting Time and
Method)
अश्वगंधा के बीजो की
रोपाई बीज के माध्यम से की जाती है | बीज रोपाई के लिए
छिड़काव और कतार दो विधियों का इस्तेमाल किया जाता है | कतार के माध्यम से रोपाई करने के लिए खेत में 20 CM की दूरी पर कतारों को
तैयार कर लिया जाता है | इन
कतारों में बीजो को 5 CM की दूरी पर लगाना होता है | इसके अलावा यदि आप
बीजो की रोपाई छिड़काव विधि द्वारा करना चाहते है, तो उसके लिए आपको
समतल खेत में बीजो का छिड़काव करना होता है |
उसके बाद खेत में हल्का पाटा लगाकर खेत में चला दिया
जाता है, इससे
बीज भूमि की कुछ गहराई में चला जाता है | एक हेक्टेयर के खेत
में तक़रीबन 8 से
12 माह पुराने 10 से 12 KG
बीजो
की आवश्यकता होती है | बीज
रोपाई से पहले उन्हें एम-45 या डायथेन एम. की उचित मात्रा से उपचारित कर ले | अश्वगंधा की खेती के
लिए अगस्त का महीना सबसे उपयुक्त माना जाता है |
अश्वगंधा के पौधों
की सिंचाई (Ashwagandha
Plants Irrigation)
खरीफ के मौसम में की गयी अश्वगंधा की फसल को सिंचाई की आवश्यकता नहीं
होती है | किन्तु
रबी के मौसम में की गयी फसल के लिए अश्वगंधा के पौधों को 4 से 5 सिंचाई की जरूरत होती
है| इसकी
पहली सिंचाई पौधा रोपाई के 8 से 10 दिन बाद की जाती है, जिसके लिए ड्रिप विधि
का इस्तेमाल करना सबसे अच्छा माना जाता है | उसके बाद की गुड़ाइयो
को 20 से 25 दिन के अंतराल में करना होता है |
अश्वगंधा की फसल पर
खरपतवार नियंत्रण (Ashwagandha Crop Weed Control)
अश्वगंधा की फसल में खरपतवार नियंत्रण की अधिक
जरूरत नहीं होती है | प्राकृतिक
विधि द्वारा खरपतवार नियंत्रण के लिए पौधों की नीलाई-गुड़ाई की जाती है| इसके खेत की पहली
गुड़ाई 20 से 25 दिन बाद की जाती है, तथा जरूरत पड़ने पर
ही दूसरी गुड़ाई करे | इसके
अलावा यदि आप रासायनिक तरीके से खरपतवार को नष्ट करना चाहते है, तो उसके लिए आपको बीज
रोपाई से पहले खेत में ग्लाइफोसेट 1.5 KG, ट्राइफ्लुरेलिन 2
KG, आईसोप्रोटूरान
0.5 का छिड़काव खेत में करना होता है |
अश्वगंधा की खेती से
कमाई, पैदावार और खुदाई (Ashwagandha
Digging, Yield and Benefits)
अश्वगंधा के पौधों को तैयार होने में 160 से 170 दिन का समय लग जाता
है | जब
इसके पौधों पर लगी पत्तियां पीली पड़कर गिरने लगे उस दौरान इसकी जड़ो की खुदाई कर
ली जाती है | जड़ो
की खुदाई से पहले खेत में पानी लगा दे, इससे जड़ो को निकलने
में आसानी होगी | इसके
बाद अश्वगंधा के पौधों को जड़ से उखाड़ ले |
पौधों को जड़ सहित उखाड़ने के पश्चात् उसके छोटे – छोटे टुकड़े कर ठीक
तरह से धूप में सूखा ले, और
फलो से बीज और पत्तियों को भी अलग कर ले| एक हेक्टेयर के खेत
से तक़रीबन 6 से
8 क्विंटल
अश्वगंधा की सूखी जड़ो का उत्पादन प्राप्त हो जाता है, तथा 50
KG बीज
प्राप्त हो जाते है | अश्वगंधा
का बाज़ारी भाव काफी अधिक होता है, जिससे किसान भाई इसकी
एक बार की फसल से लाखो की कमाई कर सकते है |
Ashwagandha Cultivation: फल से लेकर पत्ती तक बेचकर
होगी बंपर कमाई, समझें
अश्वगंधा की खेती का गणित-Ashwagandha
Farming: अश्वगंधा
के फल, बीज और छाल के प्रयोग
से कई प्रकार की दवाईयां बनाई जाती हैं. तनाव और चिंता को दूर करने में अश्वगंधा
को सबसे फायदेम माना
जाता है. इसकी खेती से किसान धान, गेहूं
और मक्का की खेती के मुकाबले 50 फ़ीसदी
तक अधिक मुनाफा कमा सकते हैं. वहीं, भारतीय चिकित्सा पद्धितियों में भी इसका काफी उपयोग है.
अश्वगंधा की खेती : भारत में परंपरागत
फसलों से इतर अब किसान मेडिसिनल प्लांट्स की खेती की तरफ तेजी से रूख कर रहे हैं.
सरकार भी किसानों को औषधीय पौधे लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. ये फसलें
नगदी होती हैं, जो किसान को बेहद कम
वक्त में बढ़िया मुनाफा दे जाती है. अश्वगंधा की खेती
करके भी अच्छी खासी कमाई की जा सकती है. इसकी खेती के लिए
सितंबर का महीना सबसे ज्यादा उपयुक्त है. बता दें कि इसके फल, बीज और छाल का प्रयोग कर कई प्रकार की दवाइयां बनाई
जाती हैं. तनाव और चिंता को दूर
करने के लिए भी इसका उपयोग किया बंपर मुनाफा-विशेषज्ञों के अनुसार, किसान परंपरागत फसलों
के मुकाबले अश्वगंधा की खेती कर 50 प्रतिशत अधिक मुनाफा
कमा सकते हैं. यही वजह है कि हाल के वर्षो में
देखा गया है कि उत्तर भारत के किसान अश्वगंधा की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं. अश्वगंधा
की खेती के लिए बीज की जरूरत-अगर आप एक हेक्टेयर
में अश्वगंधा की खेती करना चाहते हैं तो आपको 10
से
12 किलों बीज की जरूरत
पड़ती है. ये बीज 7-8 दिनों में अंकुरण की
अवस्था में आ जाते हैं. फिर इन्हें खेतों में पौधे से पौधे की दूरी
5 सेंटीमीटर और लाइन से
लाइन की दूरी 20 सेंटीमीटर लगा दिया
जाता है,दवाओं को बनाने में
किया जाता है उपयोग-अश्वगंधा को एक देशी
औषधीय पौधा भी माना जाता है. इसका भारतीय चिकित्सा पद्धितियों में भी काफी उपयोग
है. इसकी जड़ो का उपयोग आयुर्वेद और यूनानी दवाओं को भी बनाने में किया जाता है.
कब करें कटाई?
अश्वगंधा
की फसल बुवाई के 160-180 दिन बाद कटाई के लिए
तैयार हो जाती है आप इन्हें काटकर इनके
जड़ों, पत्तियों और छाल को
अलग कर बाजार में बेचकर मालामाल हो सकते हैं.